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पीटी उषा का पूरा नाम पिलाउल्लाकांडी थेक्केपरांबिल उषा है। पीटी उषा भारत की महानतम एथलीटों में से एक हैं, जिन्हें अक्सर देश की "क्वीन ऑफ ट्रैक एंड फील्ड" कहा जाता है।
वो 1980 के दशक में अधिकांश समय तक एशियाई ट्रैक-एंड-फील्ड इवेंट्स में हावी रहीं। जहां उन्होंने कुल 23 पदक जीते, जिनमें से 14 स्वर्ण पदक थे। जहां भी वो दौड़ने जाती, वो दर्शकों की फेवरेट बन जाती थीं।बाद में उनको निकनेम के रूप में ’द पय्योली एक्सप्रेस’ का नाम मिला।
उनकी प्रतिभा का पता तब चला जब वो महज नौ साल की थीं। एक स्कूल की दौड़ में चौथी कक्षा के छात्रा ने देखते ही देखते स्कूल के चैंपियन को हरा दिया, जो उससे तीन साल सीनियर था।
पीटी उषा ने राज्य और नेशनल गेम्स में अपना दबदबा कायम रखा और 16 साल की उम्र में ओलंपिक में भारत का प्रतिनिधित्व करने वाली तत्कालीन सबसे कम उम्र की एथलीट बन गईं, जब उन्हें मास्को में 1980 के खेलों के लिए भारतीय दल में शामिल किया गया था।
उन्होंने 1982 के एशियाई खेलों में भारतीय दर्शकों का दिल जीत लिया, जब उन्होंने 100 मीटर और 200 मीटर में रजत पदक जीता।
वो 1983 की एशियाई चैंपियनशिप में 200 मीटर में रजत पदक जीतने मे कामयाब रहीं और जब उन्होंने 400 मीटर में स्वर्ण पदक जीता, तो उनके कोच ओ.एम. नांबियार ने सुझाव दिया कि वह 400 मीटर बाधा दौड़ की कोशिश करें।
महज 20 साल की उम्र में खेलों की दुनिया में उन्होंने अपना नाम बनाया। इससे भी महत्वपूर्ण बात ये बात थी कि देश एथलेटिक्स की की ओर बढ़ने लगे।
जकार्ता में 1985 की एशियाई चैंपियनशिप में पीटी उषा ने पांच स्वर्ण पदक और एक कांस्य पदक जीते और ये सारे पदक उन्होंने पांच दिनों के अंतराल में जीते, उनके अंतिम दो स्वर्ण एक-दूसरे के आधे घंटे के भीतर आए।
सियोल 1986 के एशियन गेम्स में उन्होंने चार स्वर्ण पदक और एक रजत पदक जीते, जिनमें से प्रत्येक एशियाई रिकॉर्ड समय के साथ दर्ज हुआ था। इन दोनों एशियाई राजधानियों में उन्होंने अपने नाम की गुंज सुनी।
उषा ने 1990 में संन्यास की घोषणा की, लेकिन उससे पहले उन्होंने 1989 के एशियाई चैंपियनशिप और 1990 के एशियाई खेलों में चार स्वर्ण और पांच सिल्वर अपने नाम किया। हालांकि पीटी उषा ने बाद में ट्रैक पर वापसी करने का फैसला किया।
उनकी अविश्वसनीय प्रतिभा की झलक तब देखने को मिली, जब उन्होंने 1994 में एशियाई खेलों में 4x400 मीटर रिले रजत पदक और 1998 एशियाई चैंपियनशिप में चार पदक जीते। सिडनी 2000 ओलंपिक में ऐसा लग रहा था कि वो आखिरी बार तूफान की तरह दौड़ना चाहती हैं।
हालांकि, पीटी उषा के घुटने की समस्या शुरू हो गई। इसके साथ ही वापसी के सभी रास्ते भारतीय ट्रैक एंड फील्ड की क्वीन के लिए धूंधले होते गए। पीटी उषा ने अपनी संन्यास की घोषणा कर दी।
केरल के कोझीकोड में उनकी ऐकेडमी आज युवा एथलेटिक्स आशाओं और उनकी प्रतिभा को गाइड करती है। ये भारत के भविष्य के सितारों को उस ऊंचाई तक पहुंचाने का प्रयास है जो उन्होंने किया था।
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