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दीपिका कुमारी आज भारतीय तीरंदाज़ों का प्रतिनिधित्व करते हुए आने वाली पीढ़ी का मार्गदर्शन करने का काम कर रही हैं। दीपिका कुमारी का जन्म 13 जून, 1994 को रांची में हुआ था। निशाना लगाने का खेल उन्हें बचपन से ही अपनी ओर आकर्षित करने लगा। 

उनके पिता शिवनारायण महतो पेशे से ऑटो रिक्शा ड्राइवर हैं और उनकी मां एक नर्स हैं. जब दीपिका छोटी थीं उन्हें पत्थर मारकर आम तोड़ने का शौक था. इसी दौरान तीरंदाजी की भी प्रैक्टिस करती थीं. साधारण परिवार से होने की वजह से शुरुआत में वह बांस के डंडों से धनुष और तीर बनाकर निशाना लगाती थीं।

पिता नहीं चाहते थे बेटी दीपिका इस खेल को अपना करियर बनाए. इन दिक्कतों के बावजूद दीपिका हार मानने को तैयार नहीं थी, आखिरकार बेटी के जिद के आगे पिता को झुकना पड़ा. दीपिका ने 2009 में कैडेट विश्व चैंपियनशिप जीती। उसी वर्ष, उन्होंने अमेरिका के ओग्डेन में 11वीं युवा विश्व तीरंदाजी चैंपियनशिप भी जीती।

राष्ट्रमंडल खेलों की स्वर्ण पदक विजेता ने साल 2010 में ही कई अन्य बड़ी तीरंदाज़ी स्पर्धाओं में भी अनगिनत पदक जीते हैं। वह ओग्डेन में अपना पहला तीरंदाज़ी विश्व कप खेलने गईं, जहां उन्होंने व्यक्तिगत, टीम और मिश्रित टीम श्रेणियों में तीन रजत पदक जीतने में सफलता हासिल की।

उसी वर्ष उन्होंने इटली के ट्यूरिन में अपने पहले विश्व तीरंदाजी चैंपियनशिप इवेंट में हिस्सा लिया और महिला टीम स्पर्धा में बोम्बायला देवी और चेक्रोवोलू स्वुरो के साथ जोड़ी बनाकर सिल्वर मेडल जीता।

उनके इन्हीं शानदार प्रदर्शनों के चलते उनकी प्रतिभा को अर्जुन अवार्ड और पद्मश्री जैसे प्रतिष्ठित पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है। अब जब 23 जुलाई, 2021 को फिर से निर्धारित किए गए टोक्यो 2020 का आयोजन होगा, तो दीपिका कुमारी को एक कीमती ओलंपिक पदक अर्जित कर भारतीय तीरंदाज़ी को गौरवान्वित करने का तीसरा मौका मिलेगा।

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