खुदा हाफ़िज़ : देखें, मगर परिवार के साथ नहीं।
रेटिंग: 8.4 /10 स्टार (IMDB)
MK Digital Line
विद्युत जामवाल अभिनीत खुदा हाफ़िज़ कोई एक्शन फिल्म नहीं बल्कि एक आम लड़के की कहानी है। कहानी नई तो नहीं है, लेकिन उसे दिखाया बिलकुल ऐसे है जैसे कि किसी की आँखों देखी सारी घटनाएं हों।
खुदा हाफ़िज़ में विद्युत अपनी छवि से एकदम अलग अवतार में नजर आये हैं। इसमें उन्होंने किसी हीरो की तरह एक्शन करने के बजाय एक आम लड़के की तरह एक्शन सीन करते दिखाया है।
फिल्म के 70 प्रतिशत हिस्से में नोमान देश की कहानी दिखाई गई है। फिल्म में हिंदुस्तानी जैसा सिर्फ समीर और नरगिस का प्यार है. फारूख कबीर का निर्देशन और हरमीत सिंह की सिनेमेटोग्राफी अच्छी है।
फिल्म की ख़ासियत ये है कि भारतीय कलाकारों ने ही अफगानी, अरबी लोगों का रोल किया है और उनके अरबी, हिंदी और अंग्रेजी बोलने के अलग-अलग लहज़े को अच्छे से निभाया है।
विद्युत जामवाल ने अभिनय के जरिए अच्छा असर छोड़ा है। उन्होंने इस फिल्म के जरिए साबित किया है कि वह एक्शन ही नहीं इमोशनल किरदार भी निभा सकते हैं। शिव पंडित, अन्नू कपूर, आहना कुमरा ने अच्छा अभिनय किया है।
फिल्म की दो बातों को पचा पाना बहुत से लोगों के लिए मुश्किल होगा। पहला मध्यमवर्गीय परिवार के हिन्दू-मुस्लिम कपल की अरेंज मैरिज। भारत में मध्यमवर्गीय परिवारों में आज भी अरेंज मैरिज के लिए जाति देखी जाती है तो धर्म को नज़रअंदाज़ करना दूर की बात है।
दूसरी बात ये कि नोमान की मिनिस्ट्री को कुछ ज्यादा ही ईमानदार दिखा दिया। फिल्म में संगीत और अच्छा होने की गुंजाइश थी। खुदा हाफ़िज़ देखने लायक है लेकिन लेकिन परिवार के साथ देखें या नहीं, यह सोचना पड़ सकता है।
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